सुपौल. बिहार में हवा के दबाव से भी आजकल पुल टूट रहे हैं, ध्वस्त हो जा रहे हैं और नदियों में समा जा रहे हैं. इसी वर्ष जून और जुलाई के बीच केवल 17 दिनों में 12 पुलों के ढहने की घटनाएं हुईं. अगस्त और सितंबर महीने में भी अब तक 5 से अधिक पुल ध्वस्त हो चुके हैं. बीते शनिवार (28 सितंबर) की ही तो बात है जब नेपाल से आ रहे जल सैलाब ने पूरे बिहार को एक बार फिर पूरे बिहार को खौफ में ला दिया था. सबकी नजरें विशेष तौर पर नेपाल आने वाली और ‘बिहार का शोक’ कही जाने वाली कोसी नदी पर थी. आम लोगों के साथ ही बिहार सरकार भी डरी हुई थी कि कहीं कोसी बराज को नुकसान पहुंचा तो बिहार की तबाही को कोई रोक नहीं पाएगा. लेकिन, नेपाल में बारिश की कमी से अब खतरा लगभग टल चुका है और लोग राहत की सांस ले रहे हैं. आम लोग ईश्वर की कृपा बताने के साथ ही उस दौर के इंजीनियरों की ईमानदारी से किये काम की प्रशंसा करते नहीं थक रहे. दरअसल, 1956 में बने इस बराज की उम्र महज 50 साल तय की गई थी, लेकिन आज 68 साल बाद भी यह 6 लाख क्यूसेक से अधिक पानी के दबाव को सहने में सक्षम है. इस बार के जल प्रलय के बावजूद कोसी बराज ने न केवल लोगों की जान बचाई, बल्कि पानी के इस भारी सैलाब को नियंत्रित करते हुए उसे कोसी तटबंध के दोनों मुहानों के बीच बहने दिया.
होने की चर्चा होने लगी है. इसके साथ ही बिहार में ढहते और ध्वस्त होते पुलों को लेकर आज की भ्रष्टाचार भरी कार्यशैली को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं.
बता दें कि कोसी बराज के निर्माण में न केवल भारत बल्कि नेपाल का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है, बल्कि उस समय नेपाल के राजा महेंद्र और भारत सरकार के बीच इस परियोजना को लेकर विशेष समझौता हुआ था, जिसे ‘कोसी समझौता’ के नाम से जाना जाता है. यह समझौता 1954 में हुआ था, जिसके तहत नेपाल ने भारत को कोसी नदी पर बांध बनाने और उससे संबंधित संरचनाओं के निर्माण की अनुमति दी थी. यह परियोजना नेपाल और भारत दोनों के लिए लाभकारी सिद्ध हुई, क्योंकि इससे नेपाल के तराई क्षेत्रों और भारत के बिहार राज्य में बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और बिजली उत्पादन जैसी समस्याओं का समाधान किया जा सका.
विशेषज्ञों का मानना है कि कोसी नदी पर एक उच्च बांध का निर्माण अब समय की जरूरत बन चुका है. इससे न केवल बाढ़ नियंत्रण और जलाशय क्षमता में सुधार होगा, बल्कि बिजली उत्पादन, सिंचाई और जल प्रबंधन की समस्याओं का भी दीर्घकालिक समाधान मिल सकता है. कोसी बराज ने बीते वर्षों में लाखों लोगों की जान और संपत्ति को बचाया है, लेकिन भविष्य में बेहतर और स्थायी समाधान के लिए उच्च बांध का निर्माण अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है.
जल्द ही भारत सरकार एवं बिहार सरकार अगर इस पर निर्णय नहीं लेगी तो आने वाले समय में बिहार राज्य को इसका बहुत बड़ा भुगतान भुगतना पड़ेगा क्योंकि बिहार में जिस तरह कोसी नदी अपना कहर दिखती है इससे अनुमान लगता है आने वाले समय में कोसी नदी के खातिर बिहार के लोगों को बहुत बड़ा छती का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि जब बिहार के कोसी नदी का कहर सामने आता है तो बिहार के जनता ही नहीं जीव जंतुओं का भी जीना हराम हो जाता है