
आलोचना से कुछ सीखने का प्रयास..
आज पत्रकारिता पर उठते सवाल ओर गिरता स्तर कहि ना कहि समाज को नुकसान तो पहुंचा ही रहा,साथ ही ऐसे पत्रकारों की छवि को धूमिल कर रहा जो समाज,सत्ता व विपक्ष को आईना दिखाने का काम अपनी लेखनी के माध्यम से कर रहा..ऐसे पत्रकारों के जज्बे को सलाम!!*
आज पत्रकारिता पर उठते सवाल ओर गिरता स्तर कहि ना कहि समाज को नुकसान तो पहुंचा ही रह रहा हैं साथ ही ऐसे पत्रकारों छवि को धूमिल कर रहा हैं जो समाज सत्ता व विपक्ष को आईना दिखाने का काम अपनी लेखनी के माध्यम से कर रहा हैं! ऐसे पत्रकार जो सत्य पर अपने विचार लेख लिखकर समाज मे सच दिखाकर कुछ राज्यों की सरकारों के दुश्मन माने जा रहें हैं जबकि सच्चाई यह हैं कि सरकारों को पत्रकारों की लिखी गई खबरों लेखों की निंदा ना करके उससे कुछ सिख लेनी चाहिए और उस पर गम्भीरता से विचार विमर्श करना चाहिए ऐसे पत्रकार सत्ता के सहयोगी होते है ने के विरोधी!वैसे सरकारों को अपनी आलोचना कभी रास नहीं आती मगर पिछले कुछ वर्षों में सरकारें इसे लेकर प्रकट रूप में सख्त नजर आने लगी हैं!सरकार के खिलाफ अखबारों में खबरें, लेख या कोई वैचारिक टिप्पणी करने पर कई पत्रकारों को प्रताड़ित करने की घटनाएं देखी गई हैं!यहां तक कि कुछ पत्रकारों पर गैरकानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम के तहत भी मुकदमे दर्ज किए गए,जिसमें जमानत मिलनी मुश्किल होती है!इस धारा के तहत कई पत्रकार अब भी सलाखों के पीछे हैं!कुछ मामलों में पहले भी सर्वोच्च न्यायालय कह चुका है कि सरकार की आलोचना देशद्रोह नहीं माना जा सकता! मगर किसी सरकार ने उसे गंभीरता से नहीं लिया!लेकिन वही एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी पत्रकारिता कर रहे लोगों के लिए सुकूनदेह हो सकती है कि सरकार की आलोचना करना पत्रकारों का अधिकार है!हालांकि देखने की बात है कि सरकारें इस बात को कहां तक स्वीकार कर पाती हैं! सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश के एक पत्रकार के खिलाफ दायर मुकदमे की सुनवाई करते हुए की!इस संबंध में अदालत ने संविधान के अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े अनुच्छेद की याद भी दिलाई और पत्रकार को गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान कर दिया! जबकि कुछ राज्यों में ऐसे भी उदाहरण हैं, जब सरकार की किसी नीति या फैसले की आलोचना करने पर पत्रकारों को पकड़ कर थाने में बंद किया गया और उनके साथ मारपीट की गई। दरअसल, इस तरह की कोशिशें सच्चाई को सामने लाने से रोकने के लिए की जाती हैं!जब कि स्वस्थ लोकतंत्र का तकाजा है कि पत्रकारीय आलोचना को प्रोत्साहित किया जाए!इससे सरकारों को अपनी नीतियों के निर्धारण, योजनाओं के संचालन आदि में सुधार करने का अवसर मिलता है!आलोचना को रोक कर गलत नीतियों को चलाते रहना एक तरह से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करने का प्रयास ही होता है!वैसे किसी देश की पत्रकारिता कितनी स्वतंत्र है और कितने साहस के साथ अपने सत्ता प्रतिष्ठान की आलोचना कर पा रही है,इससे उस देश की खुशहाली का भी पता चलता है!आलोचना से सरकारें कुछ सीखने का प्रयास करना चाहिए पत्रकारिता आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विसंगतियों को दूर करने में मदद करती है!उसका लाभ उठाने के बजाय अगर उसका गला घोटने का प्रयास होगा तो सही अर्थों में विकास का दावा नहीं किया जा सकता!अगर कोई सरकार सचमुच उदारवादी और लोकतांत्रिक होगी तो वह आलोचना से कुछ सीखने का प्रयास करेगी। रिपोर्ट रमेश सैनी सहारनपुर इंडियन टीवी न्यूज़