नरेश सोनी
इंडियन टीवी न्यूज
ब्यूरो चीफ हजारीबाग।
सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर खतियानी परिवार की बैठक, सुधार की मांग उठी
हजारीबाग, 12 जुलाई 2025: खतियानी परिवार द्वारा शनिवार को पुराने धरना स्थल के समीप एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता अशोक राम ने की। बैठक में मुख्य रूप से प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की वर्तमान स्थिति पर गहन विचार-विमर्श किया गया।
बैठक को संबोधित करते हुए केंद्रीय महासचिव मोहम्मद हकीम ने कहा कि प्रदेश की सरकारी शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह लचर हो गई है। सरकारी स्कूलों में मौजूद शिक्षकों की योग्यता और निपुणता के बावजूद व्यवस्थागत खामियों के कारण जनता का विश्वास इन संस्थानों से उठता जा रहा है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार सरकारी संस्थानों की दशा सुधारने पर ध्यान केंद्रित करे, तो ये निजी स्कूलों से कहीं अधिक प्रभावशाली सिद्ध हो सकते हैं।
“शिक्षक अपने बच्चों को पढ़ाएं सरकारी स्कूल में” — मोहम्मद हकीम
हकीम ने सुझाव दिया कि यदि सरकारी स्कूलों में कार्यरत शिक्षक और कर्मचारी अपने बच्चों का नामांकन उन्हीं स्कूलों में कराएं, तो समाज में एक सकारात्मक संदेश जाएगा और जनता का भरोसा भी बहाल होगा। इससे सरकारी शिक्षा प्रणाली में गुणात्मक सुधार संभव होगा।
पूर्व सरकार पर भी साधा निशाना
हकीम ने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा कि उन्होंने सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों को बंद कर शिक्षा से गरीब और वंचित वर्ग को दूर कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार भी उसी नीति का अनुसरण कर रही है, जिससे शिक्षा का निजीकरण और सामाजिक असमानता बढ़ रही है।
शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की मांग
बैठक में वक्ताओं ने कहा कि प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए नीतिगत और व्यवस्थागत स्तर पर आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। यदि सरकार इच्छाशक्ति दिखाए और शिक्षा विभाग में व्यापक सुधार करे, तो सरकारी स्कूल पुनः लोगों की पहली पसंद बन सकते हैं।
बैठक में रहे ये सदस्य उपस्थित
इस बैठक में महेश विश्वकर्मा, बोधी साव, मोहम्मद नसीरुद्दीन, विजय मिश्रा, सुरेश महतो, प्रदीप कुमार मेहता, अमर कुमार गुप्ता, अमन कुमार, टिकेश्वर मेहता, मेघ मेहता सहित कई अन्य सदस्य उपस्थित रहे।
निवेदक:
मोहम्मद हकीम
(केंद्रीय महासचिव, खतियानी परिवार)
यह बैठक सरकारी शिक्षा व्यवस्था की बहाली को लेकर एक अहम सामाजिक चिंता को दर्शाती है, जिसे लेकर व्यापक जनचर्चा और सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता महसूस की जा रही है।