बिन गुरु शिक्षा

education without guru

किसी भी राज्य की शिक्षा व्यवस्था की आधारभूमि शिक्षक ही तैयार करते हैं। यदि शिक्षक ही पर्याप्त न होंगे तो शिक्षा के स्तर और नौनिहालों के भविष्य का अनुमान लगाना कठिन नहीं है। यह खबर चौंकाती है कि प्रगतिशील हरियाणा के स्कूलों में शिक्षकों के बीस फीसदी पद खाली हैं। निस्संदेह, यह आंकड़ा स्कूली शिक्षा की निराशाजनक स्थिति को दर्शाता है। किसी राज्य में यदि शिक्षकों के 25192 पद खाली हों तो स्थिति को बेहद चिंताजनक ही कहा जाना चाहिए। जो बताती है कि राज्य में नीति-नियंताओं की प्राथमिकताओं में शिक्षा कहां खड़ी है। बच्चे कल का भविष्य हैं, यदि उनकी बुनियाद ही खोखली रह जाएगी तो वे कैसे राष्ट्र का दायित्व कंधों पर उठा पाने में सक्षम होंगे। विडंबना यह भी है कि आमतौर पर सरकारी स्कूलों में कम आय वर्ग के लोगों के बच्चे परिस्थितिवश ही जाते हैं। वहीं दूसरी ओर निजी स्कूल जिस तरह कारोबार का जरिया बन चुके हैं, उसके मद्देनजर कम आय वर्ग के अभिभावक प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को भेजने से कतराते हैं। दरअसल, आज जो निजी स्कूलों का कारोबार फल-फूल रहा है उसके मूल में सरकारी स्कूलों की दशा-दिशा ही है। कुछ लोगों को लगता है कि ये स्कूल बीमार भविष्य का कारखाना बनने की दिशा में अग्रसर हैं। दरअसल, शिक्षकों की कमी से वे स्कूल जूझ रहे हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं। यह भी विडंबना है कि येन-केन-प्रकारेण नौकरी हासिल करने वाले शिक्षकों की हर संभव कोशिश होती है कि उन्हें आराम की जगह में नियुक्ति मिल जाये। दरअसल, नियुक्तियां तो ग्रामीण स्कूलों के लिये होती हैं, लेकिन शिक्षक किसी न किसी तरह तबादला शहरी स्कूलों में करवा लेते हैं। बहरहाल, तंत्र को इस गंभीर होती समस्या की ओर ध्यान देना चाहिए। विद्यार्थियों के भविष्य के प्रति संवेदनशीलता दर्शाते हुए शिक्षकों की नियुक्ति को प्राथमिकता बनाना चाहिए। दरअसल, नीति नियंताओं को समझना चाहिए कि शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर तदर्थवाद का सहारा नहीं लिया जा सकता। स्थायी शिक्षकों की जरूरत को न तो अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति से पूरा किया जा सकता है और न ही अनुबंध पर की गई शिक्षकों की नियुक्ति से। सत्ताधीशों को इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि राज्य के सबसे पिछड़े जनपद नूंह में क्यों शिक्षकों के 4353 पद खाली हैं। जाहिर जब स्कूलों में शिक्षक नहीं होंगे तो बच्चे ठीक से पढ़ नहीं पाएंगे। स्कूल नहीं जाएंगे तो जाहिर है परिपक्व व जिम्मेदार नागरिक नहीं बन पाएंगे। शिक्षा एक व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करती है। पढ़े-लिखे व्यक्ति की सोच व जीवनशैली में अनपढ़ व्यक्ति के मुकाबले खासा गुणात्मक बदलाव होता है। ऐसे वक्त में जब देश के विभिन्न राज्यों में तमाम तरह के लोकलुभावन अभियान चलाये जा रहे हैं, राज्य सरकार को भी बड़े पैमाने पर शिक्षकों की नियुक्ति का अभियान चलाना चाहिए। इससे जहां एक ओर सरकारी स्कूलों के बच्चों के भविष्य को संवारा जा सकेगा, वहीं तमाम पढ़े-लिखे बेरोजगारों की हताशा दूर होगी। वह भी तब जब राज्य में बेरोजगारी की दर काफी ऊंची बतायी जाती है। शिक्षकों की भर्ती का अभियान चलाकर राज्य सरकार राजनीतिक लाभ भी ले सकती है और छात्रों व बेरोजगारों का भविष्य भी संवार सकती है। इसके अलावा भी सरकारी स्कूलों की पढ़ाई में आमूल-चूल परिवर्तन करने की जरूरत है। जिससे छात्र-छात्राएं मौजूदा समय के साथ कदमताल कर सकें। उन्हें कार्य कौशल विषयक शिक्षा मिले। साथ ही नई शिक्षा नीति के लक्ष्यों को भी हासिल करने के लिये पर्याप्त संख्या में शिक्षकों की नियुक्ति अपरिहार्य ही है। सत्ताधीश इस तथ्य को स्वीकारें कि शिक्षकों की कमी के चलते ही राज्य की परीक्षाओं में छात्रों का प्रदर्शन खराब रहता है। जिसकी वजह से अभिभावक बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने में भलाई समझते हैं। विद्यार्थियों, खासकर लड़कियों, द्वारा पढ़ाई के बीच में स्कूल छोड़ने की प्रवृत्ति को भी इस समस्या के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। निस्संदेह बेहतर और संपूर्ण शिक्षा हासिल करना हर छात्र का अधिकार है, इस दिशा में सरकार से गंभीर पहल की उम्मीद की जानी चाहिए। सरकार को अपनी रोजगार नीति की भी समीक्षा करनी चाहिए।

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