
प्राकृतिक से खिलवाड़ पेड़ पौधे काटने का परिणाम जंगली हाथियों का तांडव-प्रो-राजेंद्र यादव
हजारीबाग संवाददाता
हजारीबाग:संत विनोबा भावे ने अपने एक प्रवचन में कहा-जीवन में तीन चीज होती है प्रकृति, विकृति और संस्कृति। भूख लगने पर खाना प्रकृति है ,जरूर से ज्यादा खा लेना विकृति है और भूख लगने पर भी सामने आए हुए भूखे अतिथि को अपना खाना खिला देना संस्कृति है।अनाज खाना प्रकृति है। फलाहार करना संस्कृति है और फलों को शराब बनाकर पीना विकृति है।और आज हम अपनी विकृति के कारण अपने प्रकृति(हाथियों)को बेघर कर अपनी संस्कृति से विमुख हो रहे हैं।
पशुओं की रक्षा प्राणी जगत के संतुलन को स्थिर रखने के लिए आवश्यक है। हाथी ,बाघ, भेड़िया, हिरण, जंगली सूअर, सियार आदि जंतुओं की असंतुलित अभिवृद्धि को प्रकृति प्रकोप के माध्यम से स्वयं ही नियंत्रित करती रहती है।यदि मनुष्य उनके विकास पर विनाश पर उतर पड़े तो फिर ये केवल यह धरती का आंगन इनके चलते-फिरते खिलौने से रहित होकर सौन्दर्यहीन हो जाएगा। पशुओं की खुरों से ,पंजों से वन्य प्रदेशों की जमीन की खुदाई, गढ़ाई, कुटाई होती रहती है फल स्वरुप उसमें वनस्पति उगाने की क्षमता बनी रहती है। पूरी जमीन उनकी भाग दौड़ से कड़ी होती है और आंधी में उड़ने से ,वर्षा में बहने से बच जाती है।वन पशुओं का मल मूत्र उसे क्षेत्र की जमीन में उपयोगी खाद देता रहता है और वहां की उर्वरता बनी रहती है। लेकिन आज हम स्वार्थ में इतने अंधे हो चुके हैं कि उनके घर उजाड़ कर प्रगतिशील समाज की गाथा लिखना चाहते हैं।आज हमारे क्षेत्र में हाथियों का आवागमन बढ़ गया है। उनके द्वारा जान माल की काफी क्षति पहुंचाई जा रही है। जिसके लिए हम स्वयं जिम्मेवार हैं।वन्य जीव पारितंत्र में हाथियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।हाथी वन में भ्रमण करते समय अपने अति विशाल आकार के कारण वृक्षों, लताओं ,पत्तियां आदि से घर्षण क्रिया करती हुई चलते हैं जिसके कारण विभिन्न प्रकार के छोटे-बड़े पौधों के बीज व परागकण उनके शरीर से चिपक जाते हैं ।हाथी किसी अन्य स्थान पर जब जाते हैं तब ये बीज व परगना वहां पर छिटक जाते हैं जिससे नए पौधों का विकास होता है। हाथियों का मल त्याग सूक्ष्म जीवों के लिए वरदान है।क्योंकि इनके द्वारा लिया गया भोजन का 40%हिस्सा ही पच पाता है और 60%हिस्सा बिना पचे ही बाहर निकल जाता है जो छोटे जीव-जंतुओं और वन भूमि के लिए गुणकारी है। लेकिन फिर भी इतने गुणकारी जीवन की लुप्त करने का हम माध्यम बने हुए हैं। इसके प्राकृतिक आवास क्षेत्र में लगभग 86% कमी आई है कैसे? हमें यह सोचना होगा।द्रुत गति से होने वाले आधारभूत संरचना ,विकास से भी हाथियों की प्राकृतिक आवासीय क्षेत्र का विनाश और क्षरण काफी अधिक हुआ है।जिसका परिणाम है कि मानव और हाथियों की बीच टकराव देखने को मिल रहा है।इन घटनाओं में कमी लाने के लिए पर्यावरण अनुकूल उपायों को पहचान कर सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रम में शामिल करना होगा।वन्य पशु मनुष्य के शत्रु नहीं मित्र हैं।उनके द्वारा होने वाले उपकारों की यादें गहराई से छानबीन की जाय तो प्रतीत होगा कि वे पालतू पशुओं से कम उपयोगी नहीं हैं।यदि हम यह समझने में कामयाब हुए तो हमारे विकृति में कमी आएगी और संस्कृति को पहचान कर प्रकृति को सुंदर मोहन और आकर्षक बनाएंगे।