
जिला सोलन ब्यूरो चीफ सुन्दरलाल
, पांडवो के मिलन का सूचक है बाड़ीधार मेला
आज होगा बाड़ीधार मेले का आयोजन
बाड़िये रे मेले खे आया मेरी जान भी बना है प्रसिद्ध पहाड़ी गाना सोलन जिला के अर्की उपमण्डल के तहत पड़ने वाले प्राचीन ऐतिहासिक शक्ति स्थल बाडीधार जिसकी शक्ति एवं प्राचीन इतिहास के चर्चे आज भी दूर-दूर तक प्रसिद्ध है में आयोजित होने वाला प्रसिद्ध बाड़ीधार मेला आज आयोजित होगा। यह मेला जहाँ महाभारत काल की पौराणिक गतिविधियों को संजोए हुए है, वहीं यहाँ के लोगों के जीवन में भी अपना अलग महत्व रखता है। इस आयोजन के माध्यम से नई पीढ़ी को क्षेत्र के इतिहास से अवगत करवाया जाता है तथा उन्हें अपने पूर्वजों से विरासत में मिली परम्पराओं को निभाने का पाठ भी पढ़ाया जाता है । इस शक्ति की दैव्य शक्ति के कई प्रमाण यहाँ विराजमान हैं । आज भी बड़ीधार नामक स्थान पर भगवान शंकर जी का धुणा उसी शक्ति के साथ मौजूद है। बाड़ीधार मेले पर प्रसिद्ध पहाड़ी गाना बाड़िये रे मेले खे आया मेरी जान भी प्रदेश में बहुत प्रचलित है।
पांडवों ने यंही बिताया था अज्ञातवास
मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव बाडीधार नामक स्थान पर आए थे और यहां रुके थे । बाडीधार बिलासपुर -सोलन राजमार्ग से पिपलुघाट नामक स्थान से लगभग 14 किलोमीटर सीधी पहाड़ी पर स्थित एक सुंदर पर्यटक प्रसिद्ध स्थल है । यहां पर देवदार एवं वान के वृक्षों का घना जंगल है । इसकी चोटी पर यह प्राचीन शक्ति स्थल है। यहां जाने के लिए अब सड़क सुविधा है। यहां केशक्ति स्थल की भूमि से जुड़े सभी लोगों का इष्ट देव जिसे लोग बाड़ा देव के नाम से जानते हैं। वर्ष में दो बार जून माह की प्रथम संक्रांति और सितंबर माह की प्रथम सक्रांति के पहले दिन यहाँ एक विशेष आयोजन होता है। परिवार के मुखिया को अपने घर में तैयार फसल को सर्वप्रथम बाडीधार मंदिर में चढ़ाना होता है। उसके बाद ही परिवार के लोग उस फसल का अन्न ग्रहण करते हैं।बाड़ा देव पांच पांडव के स्थित मंदिर बुईला गांव में पांचों पांडवों की मूर्तियां विराजमान है। वहां पर उस गांव के लोग नई फसल आने पर भंडारा करते हैं । कोटला नामक स्थान पर भी बाड़ा देव पांडव जी का चौरा है। रिहाल बटेड कोटला के मध्य जखौल नामक स्थान पर काली मंदिर के साथ बाड़ा देव का चौरा स्थापित है। पिपलुघाट के रेवटा,भेल गांव में पांडव चौरा है। इन सभी स्थानों पर वर्ष में एक बार घर मे नई फसल आने पर इन गांव के लोग बाड़ा देव को भंडारा देना होता है जिसे जग भी कहते हैं । इसी प्रकार यहां पर दयोथल नामक स्थान भी है। यहां पर भी पांडवों का ही मंदिर है । दयोथल के साथ एक प्राकृतिक जल स्रोत है । जहां पर वर्ष में एक बार वहां से पानी ले जाकर बाड़ा देव की पिडिंयो व मेहरों को धोया जाता है । मंदिर में पांडवों की मूर्तियों को स्नान करवाने के लिए दाडलाघाट के समीप अंदरोली नामक स्थान से पानी लाया जाता है । उस पानी से स्नान करवा कर मूर्तियों को बाडीधार ले जाया जाता है।
साथ लगते गांव सारमा में भी पांडव मंदिर है । वहां पर भी पांचो पांडवों के पिंडी व मेहरे के रूप में विराजमान हैं । लोगों की श्रद्धा व धार्मिक भावनाओं एवं शक्ति के दर्शन कर हजारों श्रद्धालु हर वर्ष जून माह की प्रथम संक्रांति को बाडीधार प्राचीन मंदिर में दर्शन करके कृतार्थ होते हैं । बिलासपुर जिला की सीमा से सटे होने के कारण इसकी प्रसिद्धि जहाँ सोलन जिला में है वहीं बिलासपुर जिला के लोगों में भी यह इस देवता के प्रति गहन आस्था है ।
क्षेत्र के लोग शिव शंकर धूने की राख को यहाँ मिट्टी को “गया” के फाल्गु की तरह अपने घर लाते हैं । बच्चों के बीमार होने पर धुनें की राख को विभूति की तरह इस्तेमाल करते है। लोगों का मानना है कि ऐसी अदभुत शक्तियाँ आज भी बाडीधार में विराजमान है। यह भी माना जाता है कि बेऔलाद को औलाद और निर्बल को न्याय देने वाले धर्मराज युधिष्ठिर व उनके चारों शक्तिशाली भाई आज भी बाडीधार में विराजमान है । यहाँ पर लगने वाले मेले वर्ष में दो बार होते है जून माह की प्रथम संक्रांति को बाडीधार मे एक बहुत बडा मेला लगता है इसके दुसरे दिन लगने वाला मेला पांडवों का भगवान शंकर जी से मिलना शायद प्राचीन ऐतिहासिक वचन भी है कि मैं तुम्हें वर्ष में एक बार बाडीधार में दर्शन दिया करुंगा। उसी प्राचीन ऐतिहासिक परम्परा को जगराता करते हुए बाडीधार प्राचीन मंदिर के प्रांगण में लगने वाला मेला व सभी मंदिरों से एक दिन पांडवों का बाडीधार में आना अपने आप में एक शक्ति का प्रतीक है। इस दिन का इंतजार यहाँ की जनता को वर्ष भर रहता है। इतने एतिहासिक प्रमाणों से सदियों से चली आ रही इस प्राचीन ऐतिहासिक शक्ति स्थल की विशेषता अपने आप मे शक्ति संजोए हुए है । बाडीधार व आसपास बने पांडव मंदिर चबुतरों की शक्ति इस पुरे क्षेत्र में ही नहीं बल्कि दूर तक कीर्तीमान है । ऐसे ही प्राचीन शक्ति स्थल में पांडवों के दर्शन पाना सचमुच ही एक गंगा स्नान के बराबर है। इस वर्ष भी यह मेला 14 जून को बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। जिसमे प्रदेश के कई गणमान्य व्यक्तियों को आमन्त्रित किया गया है ।
पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण
सोलन जिला में सोलन के नजदीक करोल टिब्बा, कसौली की पहाड़ी और अर्की के नजदीक बाड़ीधार पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। बाड़ीधार अपने नैसैर्गिक सौन्दय के लिये मशहूर है लेकिन आज तक इसे पर्यटन की दृष्ठि से उबारा नही गया है। बाड़ीधार से जंहा शिमला, सोलन, कसौली सहित हिमाचल के अन्य स्थलों को देखा जा सकता है वंही चंडीगढ़ सहित पंजाब के अन्य हिस्सों को भी देखा जा सकता है।
फोटो कैप्शन। बाड़ीधार की पहाड़ी और उस पहाड़ी पर स्थित पांडव मंदिर।