लोकेशन= कटनी
इंडियन टीवी न्यूज़ से =शैलेंद्र तिवारी की रिपोर्ट
*गुरू पूर्णिमा के अवसर पर महिमा बताते हुए सचिन शास्त्री जी महाराज*
सचिन शास्त्री जी अपने मुखारविंद से गुरु पूर्णिमा का महत्व बताते हुए कहा श्री गुरुपूर्णिमा के दिन गुरु का दर्शन, गुरु का पूजन वर्षभर की पूर्णिमाएँ मनाने का पुण्य देता है । दूसरे पुण्य के फल तो सुख देकर नष्ट हो जाते हैं, लेकिन गुरु का दर्शन और गुरु का पूजन अनन्त फल को देनेवाला है। इसीलिए सन्त कबीरजी ने कहा है – “तीरथ नहाये एक फल, सन्त मिले फल चार। सद्गुरु मिले अनन्त फल, कहत कबीर विचार ।।” जैसे भगवान के स्वरूप का वर्णन, भगवान की महिमा पूरी नहीं गाई जा सकती। ऐसे ही भगवत्प्राप्त गुरु की महिमा भी कोई पूर्णरूप से गा नहीं सकता। भारतीय मनीषियों के अनुसार जो स्वयं में पूर्ण होगा, वही दूसरों को पूर्णत्व की प्राप्ति करवा सकता है। पूर्णिमा के चन्द्रमा की भाँति जिसके जीवन में प्रकाश है, वही अपने शिष्यों के अन्त:करण में ज्ञानरूपी चन्द्र की किरणें बिखेर सकता है, उनके जीवन को सही मार्ग पर ले जा सकता है, कुसंस्कारों का परिमार्जन, सद्गुणों का संवर्धन एवं दुर्भावनाओं का विनाश गुरु कृपा से ही सम्भव है। और सभी को *सचिन शास्त्री जी महाराज ने विशेष रूप से कहा* कि विश्वभर के अनेक साधक प्रायः उनसे यह प्रश्न करते हैं कि गुरु के कृपा पात्र बनने की क्या योग्यता है? उनसे कहा शिष्यत्व की साकारता का मूल श्रद्धा है। श्रद्धा में निहित अनन्त सामर्थ्य ही शिष्य के लिए गुरु कृपा का आरम्भिक हेतु अथवा साधन बनती है। श्रद्धा-विश्वास परायण शिष्य के लिए गुरु अदृश्य किरणों की भाँति शिष्य की मानस ऊर्जा को संवेदित-संचालित करते हुए उसकी आध्यत्मिक उत्कण्ठा को नवीन स्वर प्रदान करते है। भौतिक, अभौतिक, लौकिक और पारलौकिक सभी स्थिति में सद्गुरु आपके साथ होते है। *ध्यान रहे ! अन्य सम्बन्ध कहीं न कहीं पहुँचकर रुक जाते हैं, पर गुरु का सम्बन्ध अटूट, अनन्त है।* अनन्तकाल के लिए बनता है, बस शिष्य की श्रद्धा-निष्ठा, समर्पण, सज्जनता, कर्मठता, सृजन-धार्मिता में कमी न आने पाये .