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देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान,कितना बदल गया इंसान,कितना बदल गया इंसान

*देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान,कितना बदल गया इंसान,कितना बदल गया इंसान..!*

*समाज को सद्भाव की ओर ले जाने की जरूरत..!

कुछ दशक पहले एक फ़िल्म का गाना आया था जिसमे वह सच्चाई बयां की गई थी कि देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान,कितना बदल गया इंसान,कितना बदल गया इंसान,सूरज ना बदला,चाँद ना बदला,ना बदला रे आसमान,कितना बदल गया इंसान,कितना बदल गया इंसान!आया समय बड़ा बेढंगा,आज आदमी बना लफंगा,कहीं पे झगड़ा,कहीं पे दंगा,नाच रहा नर होकर नंगा,और आज वाकई में दिनों देखने को मिल रहा कि कुछ छोटी-छोटी बातों पर इंसानों में आपस में ठन जाती है ऐसा लगता है कि आजकल लोगों के भीतर बातचीत से मसले का हल निकालने की बिल्कुल भी भावना नहीं बची है!मगर यह समझना भी मुश्किल है कि लोगों के भीतर ऐसी असहिष्णुता की भावनाएं आखिर आ कहां से रही है!क्यों कि जिस तरह से छोटी-छोटी बातों से आजकल माहौल गर्म हो कर हिंसात्मक हो जाता है उससे यही लगता है कि आज कुछ लोगों के भीतर इस बात का धैर्य बिल्कुल नहीं रहा है कि आपस में बैठकर विवाद का हल निकाला जा सके!फिर यह हिंसात्मक प्रवृत्ति हिंदू- मुसलिम की तो है ही साथ ही आपस में भी काफी बढ़ गई है!यानी अलग-अलग जाति-समुदायों के बीच आपस में बिल्कुल भी धैर्य नहीं रहा है और सद्भाव कम हो रहा है!विचारों के जरिए इस स्थिति को फैलाने वाले लोगों की भी जिम्मेदारी बनती है! आधुनिक समाज में हिंसा को कभी भी स्थान नहीं मिलना चाहिए मगर हो इसके विपरीत रहा है!इस हिंसा का जब तक दमन नहीं किया जाएगा तब तक इस आधुनिक समाज में हमारी तरक्की की बातें एक तरह से बेमानी ही कहलाएंगी!! रिपोर्ट रमेश सैनी सहारनपुर

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