यह पुलिस पर वह राज्य सरकारों पर आरोप नहीं है एक सवाल है मुठभेड़ों पर उठते सवाल..!!*
*पुलिस के सामने जब भी ऐसी स्थिति आ जाए और आत्मरक्षा में गोली चलानी ही पड़..!!*
*मुठभेड़ों को लेकर सियासत भी गर्म..!*
महाराष्ट्र के बदलापुर स्कूल यौन उत्पीड़न मामले के आरोपी के मुठभेड़ में मारे जाने को लेकर स्वाभाविक ही सवाल उठ रहे हैं!मुंबई हाई कोर्ट ने इस मुठभेड़ को लेकर महाराष्ट्र पुलिस के कार्यव्यवहार पर कई तीखे सवाल उठाए हैं!अदालत ने इस मुठभेड़ पर शंका जाहिर करते हुए जांच कराने का आदेश दे दिया है!महाराष्ट्र पुलिस पर उठ रहे सवाल उन सभी राज्यों की पुलिस पर भी सवाल हैं, जो मुठभेड़ दिखा कर आरोपियों को मार गिराती और उसे अपनी उपलब्धि बताती हैं! बदमाशों और पुलिस के बीच मुठभेड़ कोई अस्वाभाविक बात नहीं है। मगर इसे लेकर कुछ नियम-कायदे हैं। पुलिस के सामने जब भी ऐसी स्थिति आ जाए और आत्मरक्षा में गोली चलानी ही पड़ जाए, तो कमर के नीचे निशाना साधने का प्रशिक्षण दिया जाता है। मगर पिछले कुछ वर्षों में हुई मुठभेड़ों के दौरान इस नियम-कायदे का पालन कहीं नजर नहीं आता! इससे यही शक होता है कि पुलिस या तो अपनी कुछ कमियों को छिपाना चाहती है या उसे अदालतों पर विश्वास नहीं है, वह खुद फैसला करके दंड देने में यकीन करने लगी है।किसी आरोपी के मारे जाने से उस मामले से जुड़े कई तथ्य खत्म हो जाते हैं।इस तरह मामले की सच्चाई तक पहुंचने के रास्ते अवरुद्ध हो जाते हैं। फिर, किसी भी आरोपी को तब तक दोषी नहीं माना जा सकता,जब तक कि उसका दोष सिद्ध न हो जाए। ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं, कि किसी मामले में किसी गलत व्यक्ति को आरोपी बना दिया गया। मगर शायद राज्यों की पुलिस इस बात पर ज्यादा भरोसा करने लगी हैं कि आपराधिक मामलों का निर्णय वे खुद करें और वही दंड दें। कुछ नेता भी इसे उचित बता रहे हैं। इसीलिए पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में हुई मुठभेड़ों को लेकर सियासत गर्म है। उसमें एक आरोपी के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद जातिवादी समीकरण भी साधने का प्रयास किया गया। यह बिल्कुल ठीक नहीं है। मगर मुठभेड़ बता कर किसी आरोपी को मार डालना पुलिस और सरकारों के रवैए पर गहरे सवाल खड़े करता है। यह प्रवृत्ति किसी भी सभ्य समाज और कल्याणकारी सरकार की निशानी नहीं कही जा सकती। रिपोर्ट रमेश सैनी सहारनपुर इंडियन टीवी न्यूज़