जैन मिडिल स्कूल कैंपस, हजारीबाग में जैनियों का सिद्धचक्र विधान विशेष पूजा का अनुष्ठान चल रहा है

नरेश सोनी हजारीबाग संवाददाता

 

जैन मिडिल स्कूल कैंपस, हजारीबाग में जैनियों का सिद्धचक्र विधान (विशेष पूजा का अनुष्ठान) चल रहा है।

 

जैनियों के दोनों पंथ श्वेतांबर और दिगंबर में इसे महत्वपूर्ण माना गया है। दोनों के विधान में थोड़ा फर्क है।

सिद्धचक्र दरअसल पूजा के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक लोकप्रिय यंत्र या मंडल (आरेख) है।

 

सिद्धचक्र विधान सभी सिद्धों (मुक्त आत्माएं) सहित अन्य की आराधना के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इसमें कई दिव्य शक्तियां प्रकट होती हैं। भगवान के नामो से स्तुति अगले दिन दोगुनी हो जाती है। अंतिम दिन, भगवान की 1008 नामों से स्तुति की जाती है और 1024 अर्घ्य चढ़ाए जाते हैं। विधान फाल्गुन, कार्तिक, और आषाढ़ के अंतिम आठ दिनों में प्रारंभ होता है।

 

इस पूजा से जुड़ी एक दंतकथा है :

चंपानगर में सिंहार्थ नाम का एक राजा और कमल प्रभा नाम की एक रानी थी। राजा की मौत हुई तो उसके भाई अजीत सेन ने चंपानगर पर कब्ज़ा कर लिया। पांच वर्षीय श्रीपाल को उसके चाचा से बचाने के लिए कमल प्रभा शहर से भाग गई और सैनिकों से पीछा छुड़ाने के दौरान उसे कोढ़ियों के एक समूह के पास छोड़ दिया। श्रीपाल भी कुष्ठ रोग से संक्रमित था। उसने अपना नाम बदलकर उमर राणा रख लिया और समूह का नेता बन गया। अंततः वे उज्जैन पहुँचे जहाँ राजा प्रजापाल का शासन था। अपनी बेटी मयना सुंदरी द्वारा अपमानित होने के कारण प्रजापाल ने क्रोधित होकर बेटी का विवाह कुष्ठ रोगी श्रीपाल से कर दिया। अपने पति के रोग को लेकर मयना सुंदरी जैन साधु, मुनिचंद्र से मिली। उन्होंने सिद्धचक्र में नवपद को समर्पित आयंबिल ओली नामक अनुष्ठान करने की सलाह दी। अनुष्ठान के जल से श्रीपाल के साथ-साथ 700 अन्य कोढ़ियों के कुष्ठ रोग को ठीक हो गया। बाद में उन्होंने उज्जैन और चंपानगर पर विजय प्राप्त किया।

 

समाचार पत्रों में आपको पढ़ने के लिए मिलेगा कि सौधर्म इंद्र बनने का सौभाग्य अमुक व्यक्ति को मिला। यज्ञ नायक बनने का सौभाग्य फलां को मिला।

दरअसल यह सौभाग्य नहीं पुरुषार्थ है। आयोजन में जो अधिक पैसा देने की बोली लगाएगा उसे ही तथा कथित सौभाग्य प्राप्त होता है। (कुछ पंक्तियां कड़वी हो सकती हैं)

उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं।

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