अयोध्या।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भारत के प्रस्ताव पर 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस घोषित किया। यह निर्णय 193 सदस्य देशों ने सर्वसम्मति से स्वीकार किया। इस दिवस का उद्देश्य ध्यान की प्राचीन भारतीय परंपरा को बढ़ावा देना और मानसिक शांति, स्वास्थ्य, और वैश्विक सद्भाव को प्रोत्साहित करना है।
*महर्षि महेश योगी की भूमिका*
यह दिन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जी की जयंती से जुड़ा है, जिनके शिष्य महर्षि महेश योगी ने ध्यान को विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाया। 1965 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासचिव यू थांट से भेंट कर अपनी भावातीत ध्यान (ट्रान्सेंडेंटल मेडिटेशन) तकनीक प्रस्तुत की थी। महर्षि ने दुनिया को ध्यान के माध्यम से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य सुधारने की शक्ति से परिचित कराया।
पिछले 60 वर्षों में ध्यान पर 7,000 से अधिक शोध किए गए हैं, जो इसके मानसिक शांति, उत्पादकता और स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव को प्रमाणित करते हैं। अजय प्रकाश श्रीवास्तव, महर्षि महेश योगी संस्थान के अध्यक्ष, ने इस पहल की सराहना की और विद्यालयों में ध्यान को अनिवार्य करने की अपील की। उनका मानना है कि इससे बच्चों की एकाग्रता और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होगा। ध्यान तकनीक ने “वसुधैव कुटुंबकम” की भावना को मजबूत किया है। यह दिन ऋग्वेद के “सं गच्छध्वं सं वदध्वं” के आदर्शों को साकार करता है। विश्व ध्यान दिवस का यह निर्णय भारत की प्राचीन विरासत को वैश्विक मान्यता देता है और आधुनिक समाज में मानसिक और आध्यात्मिक शांति की आवश्यकता को रेखांकित करता है।