
चित्तौड़ गढ़
सुरेश शर्मा
महाशिवरात्रि पर विशेष
महाभारतकाल के दौरान यहां आए भीष्म ने गंगधार नाम रखा था, जो अपभ्रंश होकर गंगरार हो गया
हर साल महाशिवरात्रि पर मोक्षधाम में शिवलिंग की होती पूजा
कस्बे के मोक्षधाम स्थित शिवलिंग पर महाशिवरात्रि पर विशेष पूजा अर्चना होती है। बताते हैं कि गंगरार का पूर्व में गंगधार नाम था। गंगधार स्थल की अवस्थिति महाभारत पूर्व की मानी जाती हैं।
महाभारत की कथानुसार हस्तिनापुर के राजा शांतनु के विचित्र वीर्य ने भीष्म के प्रति उत्पन मनसा पाप से मुक्ति पाने के लिये गंगधार में आत्मदाह किया था। बाद में विचित्र वीर्य के क्रिया कर्म करने के लिये स्वयं भीष्म यहां पर आये थे और उन्होंने भाई के मोक्ष के लिये गंगा का आह्वान किया था।
गंगरार। श्मशान स्थित शिवलिंग जहां महाशिवरात्रि पर पूजन होता है।
गंगा के प्रकटीकरण के कारण ही उक्त स्थान का नाम गंगधार पड़ा।
जो कालांतर में अपभ्रंश हो गंगरार हो गया। इस घटना से संबंधित
वास्तु अवशेष एवं जल स्त्रोत आज भी धर्म प्रेमियों के श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ हैं। गंगधार में स्वंय भीष्मपितामह द्वारा तपस्या की गई। शारणेश्वर महादेव महाभारत काल की घटना से सम्बद्ध माना जाता हैं। कहते हैं यहां भीष्म पितामह ने अपनी यात्रा के दौरान वट वृक्ष के नीचे तपस्या की थी। उनसे पूर्व उनके पुत्र चित्रेश ओर विचित्रेश भी यहाँ ठहरे थे। इनके बाद भीष्म पितामह यहाँ से निकले। वट वृक्ष के नीचे चट्टान पर बैठकर कठोर तपस्या से प्रसन्न हो चट्टान से भगवान शंकर का अवतरण हुआ और तब से यह चट्टान स्वतः शिवलिंग में तब्दील हो गई। इस
कारण इस स्थल को भीष्मपितामह तपस्या स्थली के नाम से भी जाना जाता हैं। कहा जाता हैं कि तपस्या के बाद भीष्म ने यहाँ पर पुजा अर्चना कर भजन कीर्तन किया था। भगवान शिव का अभिषेक करने तथा भाई का मोक्ष करने के लिए सारणेश्वर महादेव मन्दिर के सामने गंगा का प्रकटीकरण किया गया था। जो आज गंगेश्वर कुंड के नाम से प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा सारणेश्वर महादेव मन्दिर प्रांगण में सूर्य कुण्ड, कार्तिक कुंड, गणेश कुंड व अस्थि कुण्ड स्थित हैं।
उक्त कुंडों में से अस्थि कुण्ड में आज भी ग्रामीणजन अपने मृत परिजनों की अस्थियां विसर्जित
करते हैं, तर्पण आदि रस्में सम्पादित
करवाते हैं। वही सारणेश्वर महादेव मन्दिर के उत्तर दिशा में टीले पर श्मशान भूमि पर दो विशाल प्राचीन शिवलिंग हैं जिन्हें पांडवों की स्मृति से जोड़ते हुए जौ पांडेश्वर तथा तिल पांडेश्वर के नाम से पुकारते हैं। धारणा हैं कि जो पांडेश्वर वर्ष भर में जो के बराबर घटता हैं और तिल पांडेश्वर तिल के बराबर बढ़ता हैं। मृतकों के दहन स्थल पर अवस्थित इस पावन स्मृति स्थल पर इन आदमकद शिवलिंगों की पूजा केवल शिवरात्रि के विशेष पर्व पर ही की जाती हैं। उक्त स्थल पर प्रत्येक शिवरात्रि पर चार दिवसीय विशाल मेले का आयोजन होता हैं।