
प्रस्तावक: असीम पाल, अध्यक्ष – परलकोट कृषि आदान विक्रेता संघ
ब्यूरो चीफ राकेश मित्र जिला-कांकेर
मंचासीन अतिथिगण, मेरे सभी संघ के सम्मानित सदस्यगण, किसान बंधु, युवा साथियों, और यहाँ उपस्थित सभी गणमान्य नागरिकों को मेरा सादर प्रणाम। हम सबके लिए केवल एक स्मरण का दिन नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और संकल्प का दिन है। आज हम उस महामानव की जयंती मना रहे हैं, जिनका जीवन केवल उनके लिए नहीं, बल्कि करोड़ों शोषित, वंचित, गरीब, दलित और किसानों के लिए एक आशा की किरण बनकर उभरा — मैं बात कर रहा हूँ बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की, जो एक विचारधारा थे, एक आंदोलन थे, और आज भी एक प्रेरणा हैं।बाबासाहेब का जीवन संघर्षों की मिसाल है। उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को एक अत्यंत गरीब और वंचित परिवार में हुआ था। लेकिन उनके भीतर शिक्षा की शक्ति को लेकर जो विश्वास था, उसने उन्हें विश्व के सबसे शिक्षित व्यक्तियों की सूची में ला खड़ा किया। उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स जैसी विश्व प्रसिद्ध संस्थाओं से शिक्षा ग्रहण की, और अपने ज्ञान का उपयोग केवल अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज को जागरूक और संगठित करने के लिए किया।साथियों, बाबासाहेब ने भारतीय समाज की जड़ों में फैले जातिगत भेदभाव और सामाजिक असमानता को न केवल समझा, बल्कि उसे समाप्त करने के लिए आजीवन संघर्ष किया। उन्होंने संविधान निर्माण के समय यह सुनिश्चित किया कि हर नागरिक को समान अधिकार मिले — चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, वर्ग या लिंग से क्यों न हो। उनका बनाया हुआ संविधान आज भी दुनिया के सबसे आधुनिक और प्रगतिशील संविधानों में से एक है।मैं, असीम पाल, एक किसान परिवार से आने वाला व्यक्ति, और आज परलकोट कृषि आदान विक्रेता संघ का अध्यक्ष होने के नाते, यह भलीभांति जानता हूँ कि अगर बाबासाहेब न होते, तो हम जैसे लोगों को आज यह मंच, यह सम्मान और यह अभिव्यक्ति का अधिकार शायद न मिल पाता।वे केवल एक विधिवेत्ता नहीं थे, बल्कि किसानों, मजदूरों और ग्रामीण भारत की आवाज़ भी थे। उन्होंने हमेशा कहा कि “सच्ची आज़ादी तब मिलेगी जब समाज के अंतिम व्यक्ति को उसका अधिकार मिलेगा।” और यह अधिकार केवल कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक भी होना चाहिए।आज जब हम बाबासाहेब की जयंती मना रहे हैं, तब हमें खुद से यह सवाल पूछना चाहिए — क्या हम उनके दिखाए मार्ग पर चल रहे हैं? क्या हम समानता, न्याय और भाईचारे के उस रास्ते पर अग्रसर हैं जिसकी कल्पना उन्होंने की थी?हमारा क्षेत्र कृषि प्रधान है। किसान हमारे देश की रीढ़ हैं। बाबासाहेब ने स्वयं कहा था कि “कृषि और किसानों की उन्नति के बिना राष्ट्र का विकास अधूरा है।” आज हमारे संघ का कार्य केवल आदान विक्रय तक सीमित नहीं है, बल्कि किसानों को सही जानकारी, सही मूल्य और सम्मानजनक व्यवहार देना भी हमारा उत्तरदायित्व है। अगर हम बाबासाहेब के आदर्शों पर चलें, तो हमारा संघ न केवल व्यापारिक संस्था रहेगा, बल्कि एक सामाजिक परिवर्तन का केंद्र बन सकता है।मित्रों, हमें बाबासाहेब के तीन मंत्रों को अपने जीवन में आत्मसात करना होगा शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो।शिक्षा: हमें केवल औपचारिक शिक्षा तक सीमित नहीं रहना है, बल्कि खेती, व्यवसाय, तकनीक और सामाजिक अधिकारों की भी जानकारी लेनी है। आज का किसान अब मोबाइल और इंटरनेट से जुड़ा है, और यह परिवर्तन तभी सार्थक होगा जब हम सही दिशा में उसका मार्गदर्शन करें।संगठन: परलकोट कृषि आदान विक्रेता संघ एक संगठन ही नहीं, एक परिवार है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम हर सदस्य की आवाज़ को महत्व दें और एकजुट होकर किसानों के हित में कार्य करें।संघर्ष: यह संघर्ष किसी के विरुद्ध नहीं,बल्कि भेदभाव, अज्ञानता और असमानता के खिलाफ है। जब तक समाज में एक भी किसान उपेक्षित रहेगा, एक भी व्यापारी शोषित रहेगा, तब तक हमारा संघर्ष जारी रहेगा।साथियों, आज हमें न केवल बाबासाहेब को श्रद्धांजलि देनी है, बल्कि उनके विचारों को अपने व्यवहार में उतारना है। हमें उनके सिद्धांतों को केवल भाषणों में नहीं, बल्कि अपने काम, अपने व्यवहार, और अपने सेवा भाव में जीवित रखना है।अंत में, मैं यही कहूँगा कि बाबासाहेब का जीवन हमें यह सिखाता है कि परिस्थितियाँ चाहे जितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं। आइए, हम सब मिलकर यह प्रण लें कि हम उनके सपनों का भारत बनाएँगे — एक ऐसा भारत जहाँ किसान आत्मनिर्भर हो, व्यापारी ईमानदार हो, और समाज समतामूलक हो।