एक तरफ जहाँ झांसी शहर के कई इलाकों में लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं और अपनी पीड़ा व्यक्त करने के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं, वहीं दूसरी ओर जिम्मेदार अधिकारियों की घोर उदासीनता के चलते हजारों लीटर बहुमूल्य पेयजल सड़कों पर व्यर्थ बह रहा है। यह स्थिति अत्यंत दयनीय और चिंताजनक है।
शनिवार को ग्वालियर रोड स्थित गणेश चौराहा पर महानगर पेयजल पुनर्गठन योजना की पाइपलाइन अचानक फट गई, जिससे लगभग 50 फीट की ऊंचाई तक पानी का प्रचंड फव्वारा फूट पड़ा। विडंबना देखिए कि यह अक्षम्य बर्बादी उसी विभाग के कार्यालय के ठीक सामने होती रही, जिस पर पानी के सदुपयोग की महती जिम्मेदारी है।
जल संकट और अधूरी परियोजना
साल 2019 में शुरू हुई यह महत्वाकांक्षी योजना, जिसका उद्देश्य बबीना से पानी को फिल्टर कर शहर में सप्लाई करना था, 2022 तक पूरी हो जानी थी। लेकिन पाँच साल बीत जाने के बाद भी यह परियोजना अधूरी पड़ी है। हालात इतने बदतर हैं कि टेस्टिंग के दौरान ही कई बार पाइपलाइनें फट चुकी हैं। इससे पहले भी इलाइट, जेल चौराहा और बस स्टैंड जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ सामने आ चुकी हैं। इसके बावजूद, कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, जिसका परिणाम शनिवार को फिर से देखने को मिला।
गणेश चौराहा पर लगभग एक घंटे तक पीने का पानी लगातार सड़क पर बहता रहा। स्थानीय निवासियों ने बताया कि उन्होंने तत्काल विभागीय अधिकारियों को पानी की इस बड़ी बर्बादी की सूचना दी थी, लेकिन अफसोस की बात है कि कोई भी अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा।
इस संबंध में, जल संस्थान के अधिकारियों ने लीपापोती करते हुए कहा है कि यह समस्या लाइन टेस्टिंग के दौरान आई है। उनका कहना है कि पाइपलाइन को ठीक किया जा रहा है और जल्द ही स्थिति सामान्य कर दी जाएगी। हालाँकि, यह खोखला आश्वासन उस जनता के लिए कोई मायने नहीं रखता जो हर दिन पानी के लिए संघर्ष कर रही है।
झांसी में पानी की यह बर्बादी केवल एक तकनीकी समस्या नहीं, बल्कि प्रशासकीय अक्षमता और जनता के प्रति संवेदनहीनता का जीता-जागता उदाहरण है। आखिर कब तक जिम्मेदार अधिकारी अपनी लापरवाही से आँखें मूंदे रहेंगे और शहर बूंद-बूंद पानी को तरसता रहेगा?
रिपोर्टर –जितेंद्र कुमार सैनी