महोबा से ब्यूरो चीफ तीरथ सिंह
चरखारी महोबा दीपावली को भगवान गणेश माता लक्ष्मी की पूजा पाठ के दूसरे दिन परमा को भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्रदेव का विरोध कर गोवर्धन पर्वत के रूप में पूजा करने की रीति रिवाज प्रारम्भ करवाई थी। उन्होंने स्वयं इन्द्रदेव के प्रकोप से गोवर्धन पर्वत को धारण कर सभी वृन्दावनवासियो एवं गायो व ग्वालवालो को बचाया था। तभी से भगवान कृष्ण के पद चिन्हो पर चल कर मौनिया गौरक्षक भी कहलायें। काकुन,
खरेला’ पहरेथा’ पुन्निया’ ऐंचाना ‘ कुआँ’ बारी-पड़ोरा आदि सहित सैकड़ो गांवों के मौनिया दिवारी नृत्य में किशोरों द्वारा घेरा बनाकर मोर के पंखों को लेकर बड़े ही मोहक अंदाज में नृत्य करते हैं। बुंदेलखंड के ग्रामीण अंचलों के लोगों के मौन होकर मौन परिमा के दिन इस नृत्य को करने से इस नृत्य का नाम ” मौन नृत्य रखा गया।
समस्त बुन्देलखण्ड मे पूरे दिन उमंग व उल्लास रहता है। मंदिर पर माथा टेकने के बाद मौनिया टोली के प्रण के अनुसार 05 -07 गांवों में घूमकर मौनिया नृत्य करते हैं।
मौन रहकर गांव-गांव देवी-देवताओ की भ्रमण कर पूजा पाठ करते हैं।
बाद में गांव के मंदिर में जाकर व्रत धारण कर पूरे दिन किसी से बात नहीं करते। वे इसके बाद सिर्फ मौनिया मौर पंख लेकर नृत्य करते हैं। साथ ही चलकर प्राचीन काकुन में हनुमान जी के दर्शन कर शाम होने के बाद गौपूजा के उपरान्त वृत खोला जाता है। वे आगे बताते हैं, “जिस गाँव की मौनिया नृत्य की टोली एक बार व्रत रख ले तो वह बारह वर्ष तक अनवरत करना पड़ता है। बुंदेलखंड की परंम्परा के तहत किया जाता है।