झारखंड में फिर बनेगी इंडिया गठबंधन की सरकार। सिलसिलेवार ढंग से समझिए JMM की जीत के 5 कारण
1. मंईयां ने हेमंत की बचाई नैया
राज्य की 81 में से 29 विधानसभा सीटों पर महिला वोटर पुरुष से अधिक हैं। यही कारण है कि चुनाव में INDIA की मंईयां दीदी योजना की काट में भाजपा ने गोगी दीदी योजना लाने का वादा किया। मंईयां में महिलाओं को हर माह 2500 रुपए तथा गोगो दीदी में 2100 रुपए देने का वादा है।
यहां INDIA को सत्ता में रहने का फायदा मिला, क्योंकि हेमंत सरकार ने चुनाव से पहले 1000 रुपए जारी कर दिया और चुनाव बाद 2500 करने का ऐलान कर दिया। इस पर महिलाओं ने ज्यादा भरोसा जताया। पहले चरण की वोटिंग के पहले रात में ही एक फंड और जार कर दिया। 29 महिला बहुल सीटों में से INDIA 28 सीटों पर आगे है।
2. कल्पना सोरेन का काट नहीं खोज पाई भाजपा
पति हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद राजनीति में आईं कल्पना सोरेन ने अपने भाषण और पब्लिक कनेक्ट के तरीकों से लोगों को अपने पक्ष में कर लिया। INDIA ब्लॉक के प्रत्याशियों में सबसे ज्यादा डिमांड कल्पना सोरेन की ही रही। उनकी सधी हुई भाषा और सहज, सरल अंदाज ने लोगों को जोड़ा।
कल्पना ने 100 से अधिक जनसभा की। उन्होंने सिर्फ जेएमएम उम्मीदवारों के लिए ही चुनावी सभा नहीं की, बल्कि कांग्रेस-आरजेडी और भाकपा-माले के प्रत्याशियों के लिए भी वोट मांगा। वहीं, भाजपा को महिला नेता की कमी खली। लोगों के अंदर कल्पना के प्रति रुझान के कारण ही भाजपा उन पर सीधा हमला करने से बचती रही।
3. हेमंत ने जेल यात्रा से सहानुभूति बटोरी
पूरे चुनाव प्रचार में हेमंत सोरेन भाजपा को आदिवासी विरोधी बताने पर अड़े रहे। उन्होंने हर सभा में कहा कि आदिवासियों के उत्थान से भाजपा के लोग बैचेन हैं। उन्होंने झूठे मुकदमे में फंसाकर मुझे जेल भेजा। हमारी पार्टी को तोड़ने का प्रयास किया। हेमंत ने मणिपुर से लेकर छत्तीसगढ़ तक के आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार की बातें कहकर लोगों से सहानुभूति बटोरी। इसका रिजल्ट पर खासा असर दिखा।
4. भाजपा से नाराज आदिवासी वापस नहीं लौटे
रघुवर दास की सरकार में 2016 में सीएनटी एक्ट में बदलाव की कोशिश करना भाजपा को अब तक भारी पड़ रहा है। बदलाव के घाव से भड़के आदिवासी अब तक भाजपा से नहीं जुड़ पाए हैं। सीटों के आंकड़े भी बता रहे हैं।
सीनियर जर्नलिस्ट जितेंद्र कुमार बताते हैं, ‘2014 तक कुछ आदिवासी भाजपा को वोट देते रहे हैं, इस कारण उस समय आदिवासी रिजर्व सीट पर पार्टी का प्रदर्शन भी ठीक था। लेकिन रघुवर दास की सरकार ने सीएनटी एक्ट में बदलाव कर दिया। इस पर आदिवासी नाराज हो गए और भाजपा का साथ छोड़ दिया।’
बता दें, रघुवर दास ने सीएनटी एक्ट की धारा 46 में बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत आदिवासियों की जमीन के नेचर को बदला जा सकता था। उनका कहना था कि उन्होंने राज्य में उद्योग लगाने को लेकर ऐसा किया, लेकिन आदिवासियों के बीच ये मैसेज गया कि बिजनेसमैन को फायदा पहुंचाने के लिए एक्ट में संशोधन किया गया है। वो जब चाहे हम से जमीन ले सकते हैं। भारी विरोध के बाद बदलाव के प्रस्ताव को वापस लेना पड़ा था।
5.भाजपा को उसके मुद्दे में ही उलझाया
भाजपा ने पूरे चुनाव में घुसपैठ के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। पीएम से लेकर लोकल नेता तक के हर भाषण में बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा हावी रहा। इसके उलट हेमंत सोरेन और INDIA ब्लॉक के नेता ये कहते रहे कि सीमा की सुरक्षा तो केंद्र के जिम्मे है, इसमें राज्य का क्या लेना-देना। साथ ही झामुमो-कांग्रेस एरिया वाइज मुद्दों को पकड़े रही।
हर एरिया में अलग-अलग मुद्दे पर बातें करती रही। जबकि, भाजपा पूरे राज्य में घुसपैठ के नाम पर चुनाव लड़ती रही। हकीकत ये है कि बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा सिर्फ संथाल तक सीमित है। वो भी पूरे संथाल में नहीं। भाजपा के आक्रामक रुख से बाकी वोटर एकजुट हो गए।