नई पीढ़ी दादा-दादी, नाना-नानी के प्यार से वंचित होती..!

इंसानियत और हमारे संस्कार मर चुके..!

नई पीढ़ी दादा-दादी, नाना-नानी के प्यार से वंचित होती..!

बड़ों के आदर की परंपरा भारतीय संस्कृति में हमेशा से रही है। लेकिन आज दुनिया के अन्य देशों सहित हमारे देश में भी वृद्धजनों पर बढ़ते अत्याचारों की खबरें समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गई हैं। ज्यादातर परिवारों में वृद्ध जिस तरह की उपेक्षा झेलने को मजबूर हैं, उससे ज्यादा और पीड़ादायक क्या हो सकता है! समृद्ध परिवार होने के बावजूद घर के बुजुर्ग वृद्धाश्रमों में जीवनयापन करने को विवश हैं। बहुत से मामलों में बच्चे ही उन्हें बोझ मान कर वृद्धाश्रमों में छोड़ आते देते हैं। हालांकि यह उम्र का ऐसा पड़ाव होता है, जब उन्हें परिजनों के अपनेपन, प्यार और सम्मान की सर्वाधिक जरूरत होती है। एक व्यक्ति जिस घर-परिवार को बनाने में अपनी पूरी जिंदगी खपा देता है, वृद्धावस्था में जब उसी घर में उसे अवांछित वस्तु के रूप में देखा जाने लगता है तो लगता है जैसे उस घर में रहने वालों की इंसानियत और उनके संस्कार मर चुके हैं।भारतीय समाज में सयुंक्त परिवार को हमेशा से अहमियत दी गई है। लेकिन आज के बदलते परिवेश में छोटे और एकल परिवार की चाहत में संयुक्त परिवार की अवधारणा खत्म होती जा रही है। यही कारण है कि लोग अपने बुजुर्गों से दूर होते जा रहे हैं और नई पीढ़ी दादा-दादी, नाना-नानी के प्यार से वंचित होती जा रही है। एकल परिवार के बढ़ते चलन के कारण ही परिवारों में बुजुर्गों की उपेक्षा होने लगी है। न चाहते हुए भी बुजुर्ग अकेले रहने को मजबूर हैं। इसका एक गंभीर परिणाम यह देखने को मिला है कि बुजुर्गों के प्रति अपराध भी तेजी से बढ़े हैं। शहरों-महानगरों में आए दिन बुजुर्गों को निशाना बनाए जाने की खबरें दहला देती हैं।दूसरा गंभीर परिणाम यह कि बच्चों को बड़े-बुजुर्गों का सानिध्य नहीं मिलने के कारण उनके जीवन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। एक सर्वे के अनुसार दादा-दादी या नाना-नानी के साथ रहने वाले बच्चों का विकास अकेले रहने वाले बच्चों की तुलना में कहीं ज्यादा अच्छा और मजबूत होता है और ऐसे बच्चों में आत्मविश्वास भी अधिक देखने को मिला है। आज पति-पत्नी दोनों ही कामकाजी हैं, ऐसे में बच्चे घर में अकेले रहते हैं और कम उम्र में ही उनमें अवसाद जैसी समस्याएं पनपने लगती हैं।भारतीय संस्कृति में जन्म देने वाली मां और पालन करने वाले पिता का स्थान ईश्वर से भी ऊंचा माना गया है। सदियों से यह मान्यता रही है कि जिन घरों में बुजुर्गों का सम्मान होता है, वे तीर्थस्थल से कम नहीं होते। ऐसे में वृद्धों के उत्पीड़न और उपेक्षा की घटनाएं बढ़ना गंभीर संकट का संकेत है। दरअसल वृद्धावस्था हर व्यक्ति के जीवन का एक पड़ाव है। यदि आज हम अपने बुजुर्गों की उपेक्षा करते हैं तो आने वाले समय में हमें भी अपने बच्चों से कोई अच्छी उम्मीदें नहीं रखनी चाहिए।

रिपोर्ट रमेश सैनी सहारनपुर इंडियन टीवी न्यूज़

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